Manna Dey Madhushala Lyrics
मदिरा में जाने को घर से चलता है पीनेवाला
किस पाठ से जाऊँ असमंजस में है वो भला भाला
अलग अलग पथु बतलाती सब पर में या बताता हूँ
राह पकड़ तू एक चला-चल पा जायेगा मधुशाला
सन काल-काल चल-चल मधु-घाट से गिरती प्यालों में हाला
सन ऋण जहँ-जहँ चल वितरण करती मधुसा का बाला
बस आ पहुँचे दूर नही कुछ चार कदम और चलना है
चहक रहे सन पीने वाले महक रही ले मधुशाला
नाल सुरा के धार लपट से कह न देना इस ज्वाला
मदिरा है मत इसको कह देना उर्र के चाला
दर्द नशा है इस मदिरा के विगत स्मृतियाँ साकी हैं
पेड़ा में आनन्द जिसे हो आय मेरी मधुशाला
धर्म-ग्रान्ड सब जला चुकी है जिसके अंतर के ज्वाला
मंदिर मस्जिद गिरजे सब को तोड़ चुका जो मतवाला
पंडित मोमिन पादरियों के फंडोँ को जो काट चुका
कर शक्ति है आज उसे के स्वागत मेरी मधुशाला
लालैईत अधरों से जिसने हाय नही चूमि हाला
हरषित कंपित कर से जिसने हाइ मधु के चूआ प्याला
हाथ पकड़ कर लज्जित साकी को पास नही जिसने खींचा
व्यर्थ सखा डाली जीवन के उसने मह्दुमै मधुशाला
बन पुजारी प्रेमी साकी गंगा जल पावन हाला
रहे फेर्ता अविरत गति से मधु के प्यालों के माला
और लीये जा और पेय जा इसी मन्त्र के जाप कीये जा
में शिव का प्रतिमा बन बैथून मंदिर हो या मधुशाला
एक बरस में एक बार ही जागती होली के ज्वाला
एक बार ही लगती बाजि जलती दीपों के माला
दुनिया वालों किन्तु किसी दिन आ मदिरालय में देखो
दिन में होली रात दिवाली रोज़ मनाती मधुशाला
अधरों पर हो कोई भी रस जिव्हा पर लगती हाला
हैं जग हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला
हर सूरत साकी का सूरत में परिवर्तित हो जाती
आंखों के आगे हो कुछ भी आंखों में है मधुशाला।
सुमुखि तुम्हारा सुंदर मुख ही मुझ को कंचन का प्याला
छलक रही है जिसमें माणिक रूप मधुर मादक हाला
में ही साकी बनता में ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम वहीं गई हो मधुशाला
दो दिन ही मधु मुझे पीला कर ऊब अति साकी बाला
भर कर अब खिस्का देते है वो मेरे आगे प्याला
नाज़-ओ-अदा अन्दाज़ोन से अब हाय पिलाना दूर हुआ
अब तो कर देते है केवल फ़र्ज़-अढ़ाई मधुशाला
छोटे से जीवन में कितना प्यार करूँ पीलून हाला
आने के ही साथ जगत में कहलाया जाने-वाला
स्वागत के ही साथ विदा का होती देखि तैयारी
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन मधुशाला
शांत सकी हो अब तक साकी पीकर किस उर्र के ज्वाला
और और का रतन लगाता जाता हर पीने-वाला
कितनी इक्शा एक हर जाने-वाला यहाँ छोड जाता
कितने अर्मानोन के बनकर कब्र खाड़ी है मधुशाला
यम आयेगा साकी बनकर साथ लिये काली हाला
पे न होश में फिर आयेगा सुरा विशद यह मतवाला
यह अंतिम बेहोशी अंतिम साकी अंतिम प्याला है
पथिक प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला
गिरती जाती है दिन-प्रतिदिन प्रनैअनि प्राणों के हाला
मगन हुआ जाता दिन-प्रतिदिन दें सुभग मेरा तन प्याला
रूठ रहा है मुझसे रूप सी दिन-दिन यौवन के साकी
सूख रही है दिन-दिन सुन्दरी मेरी जीवन मधुशाला
धलक रहे हो तन के घाट से संगिनि जब जीवणाला
पात्र गरल के ले अब अंतिम साकी हो आनेवाला
हाथ पारस भूल प्याले के स्वाद सुरा जिव्हा भूल
कानन में तुम कहती रहना मधुकन्न प्याला मधुशाला
मेरे अधरों पर हो न अंतिम वस्तु न तुलसी-जल प्याला
मेरे जिव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगा-जल हाला
मेरे शव के पीछे चलने-वालों याद इस रखना
राम-नाम है सत्या न कहना कहना सच्ची मधुशाला
मेरे शव पर वह रॉय हो जिसके आंसू में हाला
आह भर वह जो हो सुरभित मदेरा पीकर मतवाला
दे मुझको वो कान्धा जिनके पद-मद दाग-मग हनत हो
और जलून उस्स तौर जहाँ पर कभी रहे हो मधुशाला
और चिता पर जाए उन्देला पात्र न घृत के पर प्याला
घण्ट बंद अंगूर लता में मध्य न जल हो पर हाला
प्राण-प्रिय यदि श्राद करो तुम मेरा तो ऐसे करने
पीने-वालों को बुलवा कर खुलवा देना मधुशाला
नाम अगर पूचे कोई तो कहना बस पीने-वाला
काम गरल न और डालना सब के मदिरa के प्याला
जाती प्रिय पूचे यदि कोई कह देना दीवानों के
धर्म बताना प्यालों का ले माला जपना मधुशाला
पीटर पक्ष में पत्र उतना अरज्ञन न कर में पर प्याला
बैठ कहीं पर जाना गंगा सागर में भरकर हाला
किसी जगह के मिट्टी भीगे तृप्ति मुझे मिल जायेगी
दर्पण अर्पण करने मुझको पद पद करके "मधुशाला"
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